फिर वो पीछे की तरफ मुड़ती हैं देखने के लिए।
रश्मि उठो सुबह हो गई हैं। मम्मी आप?
हाँ, मैं क्यों क्या हुई। देख कितने बज चुके हैं।
अब वो सपनों की दुनिया से निकलकर असली जिंदगी में आ चुकी थी।
मम्मी सोने दो ना! अब तो स्कूल भी खत्म हो गया हैं।
हाँ, पता हैं मुझे। पर अभी उठ जा। बाद में सो जाना।
ठीक हैं मम्मी। अब वो अपने बिस्तर से उठ जाती हैं। और नहाने चली जाती हैं।
कुछ मिनटों के बाद –
रश्मि नीचे आ जाती हैं। उसके पापा अखबार पढ़ रहे होते हैं और मम्मी रसोईघर में काम।
पापा गुड मार्निग।
गुड मार्निग बेटा। आओ बैठो।
जी पापा। रश्मि कुर्सी पर बैठ जाती हैं।
रश्मि तुम्हारे बारहवीं का रिजल्ट कब आ रहा हैं?
पता नहीं पापा। क्यों क्या हुआ?
हुआ तो कुछ नहीं रश्मि। दफ्तर में बात चल रही थी कि तबादला हो सकता हैं।
आ जाएगा पापा तीन-चार हफ्तों में।
ठीक हैं। समय पर आ जाए तो अच्छा हैं। और हाँ, थोड़ी सी पैंकिग शुरू कर देना। पता नहीं कब कहाँ जाना पड़ जाए।
ठीक हैं पापा। हो जाएगा।
चलो नाश्ता कर लो।
जी पापा।
दो घंटों के बाद-
मम्मी इस बार पता नहीं कहाँ जाना पडे़गा?
हाँ, रश्मि वो तो हैं। पर तुम अपना सामान थोड़ा-थोडा़ करके पैक करना शुरू कर देना।
ठीक हैं मम्मी।
देहरादून शहर-
रेहान- कल मिलने आ जाना।
दमन- हाँ, भाई आ जाऊँगा। जेहन को भी लाना हैं क्या साथ में?
रेहान- क्यों वो कहाँ जाएगा रे?
दमन- भाई, मुझे क्या पता।
रेहान- चुपचाप ले आना उसे।
दमन- जी भाई।
रेहान- मैं विहान को फोन कर दूँगा। तू जेहन को ले आना। चल रखता हूँ।
दमन- पर भाई, वो तो देहरादून में है ही नहीं।
इससे पहले की दमन ये बात बोल पाता रेहान ने फोन कट कर दिया।
दमन- क्या हैं यार, लोग पूरी बात तो सुनते हैं नहीं। फोन काट देते हैं। पता नहीं, अब कल क्या होगा?
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