किसी के तलबगार होंगे हम
“मेहरबां वो जब से महजबीं दिल पे हमारे हुए, तमाम हंसी नज़ारे तब से फ़कत उनके, बेगाने हुए| अब और क्या उफ़! किसी के तलबगार...
“मेहरबां वो जब से महजबीं दिल पे हमारे हुए, तमाम हंसी नज़ारे तब से फ़कत उनके, बेगाने हुए| अब और क्या उफ़! किसी के तलबगार होंगे हम, जब उनके उफ़! मैखानए-हुस्न के हम, दीवाने हुए|| लेखक: राजेश शर्मा loading…