हादसा, आक्रोश और जाने कितने महाभोज
रात के क़रीब पौने एक बजे अपनी पदस्थापना स्थल के ट्रांजिट-हॉस्टल के अपने कमरे में वापस आकर मैं अपने जूते उतार रहा था। जूतों पर...
रात के क़रीब पौने एक बजे अपनी पदस्थापना स्थल के ट्रांजिट-हॉस्टल के अपने कमरे में वापस आकर मैं अपने जूते उतार रहा था। जूतों पर सड़क से लगा गरम खून अब पूरी तरह से ठंडा पड़ चुका था। शरीर भी बुरी तरह टूट रहा था। अब अपने गर्म कम्बल और नरम बिस्तर से दूर हर...