ख्वाब की इक रात
किया जो बंद मैं आंखें अपनी आने लगे ख्वाब उनके, ना जाने कितनी-कितनी. कुछ ख्वाब ऐसे थे मानो रात गहरी हो जैसे, खड़ा मैं हूं...
किया जो बंद मैं आंखें अपनी आने लगे ख्वाब उनके, ना जाने कितनी-कितनी. कुछ ख्वाब ऐसे थे मानो रात गहरी हो जैसे, खड़ा मैं हूं किनारे समंदर के जैसे. एक उजली किरण दिखींं आते करीब मेरे, वो आईं, अपनी घटा बिखराईं दिखा इक चेहरा, चाँद हो जैसे. थीं रौशनी इतनी रात हो पुर्णिमा की जैसे,...