तेरे बिना अब जाऊं कहां मैं…!!
एक पहेली जिंदगी बनी है काफिर उधेड़बुन काफी है ज़ेहन में मेरे ना मिल रही निशान मंजिल की रास्तों के सफर में फासले काफी हैं...
एक पहेली जिंदगी बनी है काफिर उधेड़बुन काफी है ज़ेहन में मेरे ना मिल रही निशान मंजिल की रास्तों के सफर में फासले काफी हैं दरमियां में लेकिन ना साथ है कोई ना कोई सहारा फलसफा मुहब्बत की दूरियों से बनीं है काश ! मंजिल की पहली सीढ़ी दिखे ओझल नैनों में सपने कईं हैं...