था गुलाम जब देश हमारा,
हिंदुस्तान ढूंढ रहा था आजादी अपनी.
जन्म लिया था तब भगत सिंह ने,
आजाद हिंद करवाने को…!!
थीं उनकी उम्र बारह के करीब जब,
घटी थी घटना जलियांवाला बाग हत्याकांड की तब.
बदल दिया सोच अपनी की जीना-मरना है देश के लिए,
छोड़ पढ़ाई लाहौर के नेशनल कालेज की.
किया स्थापना नौजवान भारत सभा की,
हुए थे उद्विग्न वो हुई थी फांसी जब.
रामप्रसाद बिस्मिल को काकोरी कांड की,
तब चन्द्रशेखर आजाद संग मिलकर वो.
बना डाला था हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन,
था उद्देश्य संगठन का…!!
सेवा, त्याग, पिड़ा झेल नवयुवक तैयार करना,
जो जाने देश के लिए जीना व मरना.
थे प्रभावित भगत सिंह कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों से,
और थे वो पक्के पोषक समाजवाद के…!!
देख शोषण मजदूरों की,
हो साथ बटुकेश्वर दत्त के.
फेंक दिया बम असेंबली में,
दिखा दिया उन्होंने अपना ईमान…!!
के देखों अंग्रेजों कि कितना बदल गया हिंदुस्तान,
फेंक कर बम अडिग रहे वो.
लगा कर नारा “इंकलाब-जिंदाबाद, सम्राज्यवाद मुर्दाबाद”.
पर्चा हवा में उछाला,
हो गए गिरफ्तार वो हंसते-हंसते.
हुई सजा फांसी की उन्हें संग बटुकेश्वर दत्त और राजगुरू के,
क्योंकि राजगुरू ने था मारा ए.एस.पी. साँण्डर्स को..!!
फांसी के पहले भगत सिंह ने अपने भाई कुलतार को भेजा था पत्र,
जिसमें उन्होंने लिखा था-
“उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इंतहा क्या है?”
“दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या गिला करें।
सारा जहां अदू सही, आओ! मुकाबला करें ।।”