हे शाम! तू इतनी उदास क्यों?
मैं बदहवास क्यों?
मुझे भी गम है तेरे न लौट आने का,
ऐ जाने वाले तुझमें इतनी मिठास क्यों?
जाने वाले कब लौटे है फिर पहनू मैं वादे का लिबास क्यों?
हे शाम!……!!
रंग होते है हजारो — इन्द्रधनुष में सज कर प्यारे लगते है,
एक दूसरे के आलिंगन में न्यारे लगते है,
लेकिन अलग अलग बेचारे लगते है!
फिर रंगीनियो पर विश्वास क्यों?
सूर्य, जो रंगता है निसर्ग को, उसपर अविश्वास क्यों?
हे शाम!…..!!
कल सुबह तुम्हारी यादों का आँखों में सैलाब हो।
और फिर गमों से भरी रात में तुम्हें पाने का चमकता हुआ ख्वाब हो।।
हे शाम! तू इतनी उदास क्यों?
मैं बदहवास क्यों?
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