नोटबंदी के बाद अब तक क्या-क्या बदला है..?

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मोदी सरकार के नोटबन्दी के फैसले को आज 56 दिन हो रहे हैं और इस फैसले के पहले दिन से ही विपक्ष लगातार सरकार पर हमला करता आ रहा है । विपक्ष का आरोप है कि पीएम मोदी ने तानाशाही फैसला लेते हुए गरीबों और मजदूरों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया है । वहीं दूसरी ओर सरकार का कहना है कि इस फैसले से भ्रस्टाचार और कालेधन पर रोक लगेगी । लेकिन सबसे बड़ा सवाल आज भी यही है कि जिन लोगों को अभी तक कैश की दिक्कत हो रही है उसके लिए जिम्मेदार कौन है ।

नोटबन्दी के फैसले पर केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कहा था कि नोटबंदी जैसे फैसला 56 इंच से भी बड़े सीने वाला व्यक्ति ले सकता है। कोई भी कमजोर पीएम ऐसा फैसला नहीं ले सकता। इसके सकारात्मक परिणाम अगले कुछ दिनों में आएंगे।

आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने 8 नवंबर को नोटबंदी का ऐलान करते हुए 500 और 1000 रुपया के पुराने नोट को चलन से बाहर कर दिया था। अब बाजार में 500 और 2 हजार रुपये का नया नोट आ चुका है। इन छप्पन दिनों में देखा जाए तो नोटबंदी के बाद भारत कैशलेश इंडिया की तरफ बढ़ रहा है। डिजिटल पेमेंट को लेकर पहले के मुकाबले 300 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। एक तरफ जहां सोने के दामों में गिरावट आई है तो दूसरी तरफ प्रॉपर्टी के रेट भी सस्ते हुए है। लेकिन अभी भी सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि उन सुदूर गांवों तक ये व्यवस्था कैसे पहुचेंगी जहाँ दूर दूर तक बैंक ,एटीएम और इंटरनेट नही है । कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि सरकार ने फैसला तो सही लिया लेकिन इसे लागू करने में जल्दबाजी हो गई जिसके कारण देश में नोटों को लेकर अव्यवस्थायें फ़ैल गयी हैं ।

आईए जानते है कि नोटबंदी के बाद अब तक क्या-क्या बदला है और कहां-कहां लोगों को इसके फायदे हुए हैं –

-महंगाई हुई कम

-सब्जी की कीमतें 50 फीसदी हुई कम

-कार बाईक की कीमतें कम

-डिजिटल वॉयलेट कंपनियों में रोजगार बढ़ा

-डिटिजल पेमेंट में 300 फीसदी का इजाफा

-प्रॉपर्टी की कीमत सस्ती हुई

-खाने की चीजें 18 फीसदी सस्ती

-सोने के दामों में गिरावट

-3300 करोड़ रुपए का कालाधन जब्द

-बैंकों में करीब 300 फीसदी नगदी बढ़ी

-नोटबंदी के बाद बैंक में 13 लाख करोड़ रुपए जमा

-400 करोड़ रुपये के जाली नोट का कारोबार बंद

-6 लाख करोड़ के नए नोट बाजार में आए

अगर हम नोटबंदी के बाद की उम्मीदों की बात करें तो –

-ब्याज दरौ में कटौती हो सकती है

-लोगों को सस्ते लोन का फायदा मिल सकता है।

-रियल एस्टेट में 25 से 30 फीसदी कीमती कम होंगीं ।

अगर हम नोटबंदी के बाद से लेकर 1 जनवरी 2017 तक इनकम टैक्स डिपार्टमेंट और जांच एजेंसियों की बात करें तो हमने स्पष्ट रूप से देखा कि सभी लगातार सक्रिय थे । इसी का नतीजा है कि इस बीच 1,100 केसेज में कार्रवाई हुई। इस दौरान 556 सर्वे, 253 छापेमारी और 289 मामले कैश जब्त करने के सामने आए। अगर हम इनकम टैक्स सोर्सेज की मानें तो इस अवधि में आयकर विभाग ने कुल 562 करोड़ रुपये जब्त किए। इस रकम में 110 करोड़ रुपये के नोट नई करंसी के रूप में थे। इसके अलावा 1 जनवरी तक 4,663 करोड़ रुपये की अघोषित आय का भी इनकम टैक्स विभाग ने खुलासा किया। साल के पहले दिन तक इनकम टैक्स विभाग ने वेरिफिकेशन के लिए 5062 लोगों को नोटिस जारी किया।

इनमें से 500 मामले सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के हवाले किए गए।

नोटबन्दी के बाद सबसे ज्यादा दिक्कत उन परिवारों को भी हुई जिनके घर में शादियां थी । नवंबर-दिसंबर में शादियों का सीजन भी था, इसलिए रियल एस्टेट को छोड़कर सराफा-ऑटोमोबाइल व रेडीमेड गारमेंट्स बाजार में ग्राहकी की उम्मीद धूमिल हो गई। अगर हम रियल एस्टेट की बात करें तो पहले 250 रजिस्ट्रियां प्रतिमाह होती थी लेकिन मौजूदा समय में 30-40 रजिस्ट्रियां ही हुई हैं नवंबर-दिसंबर तक । इसी तरह अगर हम ऑटोमोबाइल की बात करें तक पहले हर माह लगभग 02 करोड़ का कारोबार था लेकिन अब 01 करोड़ कारोबार रह गया नवंबर में । कुल मिलाकार इन दोनों क्षेत्रों को नोटबन्दी के कारण भारी मुसीबत झेलनी पड़ रही है ।

सरकार ने डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने के लिए देश के सभी जिलों में कैशलेस का प्रशिक्षण कराने की पूरी रूपरेखा तैयार करके कार्य शुरू कर दिया है जो कि टेढ़ी खीर है क्योंकि अधिकांश जिलों में पढ़ें लिखे लोगो की संख्या कम है जिसमे महिलाओं की स्थिति तो और भी ख़राब है । ऐसी स्थिति में तो ये प्रशिक्षण एक नामुमकिन कार्य लगता है लेकिन पीएम मोदी के इस पावन यज्ञ में अगर सभी अपना योगदान दें तो यह कार्य जरूर सफल हो सकता है । अगर हम उदाहरण के लिए भिंड जिले की बात करें तो यहाँ कुल 62 फीसदी लोग ही पढ़े लिखे हैं जिसमें पुरुष 40 फीसदी और महिलाएं 22 फीसदी शिक्षित हैं। इसके अलावा यहाँ अब भी 38 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो पढ़ना लिखना ही नहीं जानते हैं।

सच्चाई तो ये है कि बैंक से नोट मिल नहीं रहे हैं, जितने रुपए बंटे, वह बैंक में वापस नहीं लौट रहे। बाजार में रोजाना पीओएस मशीन की डिमांड है लेकिन बैंक पीओएस मशीन नहीं दे पा रही हैं। जिससे कैशलेस ट्रांजेक्शन की मंशा पूरी नहीं हो पा रही है। एक तरफ सरकार सभी से अपील कर रही है कि ज्यादा से ज्यादा कैशलेस व्यवस्था अपनाए वहीं दूसरी ओर सरकार द्वारा पीओएस मशीन की उचित व्यवस्था न कर पाने के कारण वो खुद आलोचना के केंद्र में है ।

नोट बंदी के बाद से ही सरकार का पूरा ध्यान कैशलेस सिस्टम पर है। जब बाजार में कैश की अभाव नहीं होगा लोग कैशलेस का पालन करेंगे नहीं। इसलिए लोगों को अब कैशलेस ट्रांजेक्शन की आदत डाल लेनी चाहिए । कांग्रेस का कहना है कि नोटबंदी पर पीएम मोदी की ओर से 50 दिनों की दी गई मियाद पहले ही पूरी हो चुकी है, लेकिन देशभर में कैश की किल्लत खत्म नहीं हुई है। आज भी लोग बैंक और एटीएम के बाहर लाइन में खड़े होने को मजबूर है। बैंक में लोगों को देने के लिए प्रयाप्त पैसे नहीं हैं, एटीएम के बाहर नो कैश का बोर्ड लगा है। हालांकि सरकार ने एटीएम से कैश निकालने की सीमा बढ़ी दी है। लेकिन कैशलेस लोगों की मुश्किलें बरकरार है।

इस मुद्दो को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच घमासान भी जोरों पर है। सरकार नोटबंदी को देश के विकास के तुरूप का पत्ता बताने में जुटी है। वहीं विपक्ष इस आम गरीब जनता खिलाफ मोदी सरकार की मुहिम बता रहा है। इन सबके बीच इस मुद्दे के लेकर कांग्रेस के तेवर लगातार तल्ख होते जा रहे हैं। कांग्रेस ने नोटबंदी को स्वतंत्र भारत का अबतक का सबसे बडा़ घोटाला करार दिया है। कांग्रेस के मुताबिक पीएम मोदी ने देश के चंद 50 बिजनेसमैन और अपने दोस्तों को फायदा पहुंचान के लिए नोटबंदी का फैसला किया और आम गरीब लोगों को सड़कों पर ला दिया है, उनका रोजगार छीन लिया है। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक नोटबन्दी के कारण पूरे देश में अब तक सैकड़ों लोगो की जान गई है। विपक्ष ने आरोप लगाते हुए कहा है कि इसके लिए सिर्फ और सिर्फ पीएम मोदी ही जिम्मेदार हैं । उन्हें नैतिक रूप से अपनी गलती मानते हुए पद से इस्तीफा दे देना चाहिए ।

बहरहाल ,कुछ भी हो लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी ने समूचे विपक्ष को अपना 56′ का सीना दिखाते हुए जिस प्रकार से नोटबन्दी का ऐतिहासिक फैसला लिया और उसके बाद जब आज इस फैसले को 56 दिन हो रहे हैं तब भी वह अपने फैसले को सही मान रहे हैं । उनका कहना है कि मेरे साथ देश की सवा सौ करोड़ जनता है । ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि नोटबन्दी का फैसला देश की अर्थव्यवस्था और आम लोगो को कितना फ़ायदा पहुंचा पायेगा लेकिन अभी इस फैसले का मिला जुला असर ही देखने को मिल रहा है । नोटबन्दी के फैसले के 56 दिन बाद एक तस्वीर तो स्पष्ट रूप से सबके सामने आई है कि किसानों , छोटे दुकानदारों और मजदूरों को इस फैसले के बाद जबर्दस्त नुकसान हुआ है जिसकी भरपाई शायद ही कभी हो पाये और शायद ही ये पता लग पाये कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है – सरकार या सिस्टम ?




लेखक: अनुज हनुमत “सत्यार्थी”

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