अनोखा होता हैं रिश्ता
एक पिता और बेटी का
पिता बेटी के रिश्ते से कम
दोस्ती के रिश्ते से ज्यादा।
जब कोई तकलीफ हो बेटी को
खून जलता हैं पिता का
आँसू तो दिखा नहीं सकते
अनसुलझा चेहरा बना देते।
माँ तो सब के सामने
दर्द दिखा सकती हैं अपना
पर पिता नहीं नहीं दिखा सकते
सबके सामने दर्द अपना।
शिला के समान दूसरों के सामने
खुद को जताते हैं
पर अंदर ही अंदर
खून के आँसू पीते हैं।
परछाई की तरह खडे़ रहते
कभी पास होकर तो कभी दूर
पल भर में सुलझा देते
मुश्किल हो चाहे कितनी बडी़।
पिता ने कभी चेहरा पढ़ने का
कोई कोर्स तो नहीं किया कभी
पर चेहरा पढ़ना जानते हैं
गलती नहीं करते कभी।
जान के भी अनजान बनना
बखूबी हैं उन्हें आता
किसकी कैसी नीयत हैं
सब समझ में उन्हें आता।
जब कभी सूट पहनने मे
करती हूँ कभी गलती
तू बडी़ कब होगी?
ऐसा कहकर ठीक कर देते।
बच्ची ही बना रहना चाहती हूँ
हमेशा उनके लिए
बडी़ बनने में वो मजा नहीं
जो छोटी बनने में हैं।
मान हूँ मैं उनका
इतना तो जानती हूँ
सर ऊँचा रहें हमेशा उनका
इतना मैं चाहती हूँ।