अगर राहुल गांधी ने 10 साल पहले न फाड़ा होता अध्यादेश तो आज नहीं जाती संसद की सदस्यता

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नई दिल्ली। ‘मोदी सरनेम’ को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में सूरत की एक अदालत ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराया। कोर्ट ने उन्हें 2 साल जेल की सजा सुनाई। दो साल की सजा के बाद राहुल गांधी की सदस्यता खत्म कर दी गई है। हालाँकि 2013 में उन्होंने उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय को उलटने के लिए तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार की तरफ से लाए गए अध्यादेश को फाड़ा नहीं होता तो आज उनकी सदस्यता नहीं जाती।

सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2013 के अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि अगर किसी जनप्रतिनिधि (सांसद, विधायक, विधान परिषद सदस्य) को किसी मामले में कम से कम 2 साल की होती है तो उसकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से खत्म हो जाएगी। खास बात ये है कि केंद्र की तत्कालीन मनमोहन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए उसी साल अध्यादेश लाने की कोशिश की थी लेकिन तब राहुल गांधी ने उसे बकवास बताते हुए उसकी प्रति फाड़कर फेंक दी थी।

27 सितंबर 2013, अजय माकन दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी आ जाते हैं। तब कांग्रेस उपाध्यक्ष रहे राहुल कहते हैं, ”मैं यहां अपनी राय रखने आया हूं। इसके बाद मैं वापस अपने काम पर चला जाऊंगा।” इसके बाद राहुल कहते हैं, ”मैंने माकन जी (अजय माकन) को फोन किया। उनसे पूछा क्या चल रहा है। उन्होंने कहा- मैं यहां प्रेस से बातचीत करने जा रहा हूं। मैंने पूछा- क्या बात चल रही है। उन्होंने कहा- ऑर्डिनेंस के बारे में बात हो रही है। मैंने पूछा क्या? इसके बाद वे सफाई देने लगे। मैं आपको इस अध्यादेश के बारे में अपनी राय देना चाहता हूं। मेरी राय में इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए।”

अगर अध्यादेश पास हो गया होता तो क्या होता?
सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2013 में दोषी करार दिए विधायकों-सासंदों की अयोग्यता को लेकर अपना आदेश दिया। यह वही दौर था, जब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में फंसे हुए थे। दोषी पाए जाने पर उनकी सदस्यता पर भी खतरा था। तब के राज्यसभा सांसद राशिद मसूद पहले ही भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराए जा चुके थे। विपक्ष की तीखी आलोचना के बाद भी सितंबर 2013 में मनमोहन सरकार एक अध्यादेश लेकर आई।

अध्यादेश में कहा गया था कि मौजूदा सांसद या विधायक अगर किसी अदालत में दोषी करार दिए जाते हैं और अगर ऊंची अदालत में मामला विचाराधीन है तो सदस्यता नहीं जाएगी। हालांकि, इस दौरान वे सदन में वोट नहीं दे सकेंगे, न ही वेतन मिलेगा। राहुल ने इस अध्यादेश को “पूरी तरह से बकवास” करार दिया था और कहा था कि इसे “फाड़ कर फेंक दिया जाना चाहिए”। यही अध्यादेश अगर पास हो गया होता तो राहुल की लोकसभा सदस्यता नहीं जाती। यही अध्यादेश अगर पास हो गया होता तो सपा विधायक आजम खान, अब्दुला आजम से लेकर भाजपा विधायक विक्रम सैनी तक की सदस्यता बरकरार रहती।

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