कुछ पल को लगता है यूँ तुम करीब हो मेरे
फिर दूसरे ही पल तुम जुदा क्यों हो?
रहते हो तुम दिल के करीब मेरे
पर लगता है ये क्यों… तुम खफा-खफा हो.
कभी सपनो में आकर नींदों को उड़ा जाते हो
कभी हवाओं को कहते हो मुझे सताए
कभी जब आती है याद तेरी
आखें नाम हो जाती है मेरी
तुम यादों में तो हो आते
सामने तुम आते नहीं क्यों हो?
फकीरों में सहजादा दिल है मेरा
कभी तुम मेरे दर को आते क्यों नहीं हो?
देखो, गुश्ताखियों पे ना जाओ तुम
मेरे यकीं को समझो.
है कुछ कह रहा नादान दिल मेरा
तुम मेरी ना सही मेरे मुहोबत को समझो.
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