कमली मैं….!!
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राह ताकती मैं बैठी
एक तेरी
कभी चुपके
कभी छुपके
कभी दबे पांव
आना तेरा.
मैं बेहती जाऊं
धारा में तेरी
प्यार के
अविरल
निश्चल
बेहती जाऊं.
सुबह सुहानी
ओस की बूंदों सी
पड़ती प्यार की धागों पर
चमकीली
भीनी-भीनी
खुश्बू बिखेरे.
सुला कर वक्त को
जगा लूं इश्क़ की अग़न
खो जाऊं तुझमें
डूब जाऊं तेरे प्यार में
जल जाऊं
शोले में प्यार की तेरे.
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