“मेहरबां वो जब से महजबीं दिल पे हमारे हुए,
तमाम हंसी नज़ारे तब से फ़कत उनके, बेगाने हुए|
अब और क्या उफ़! किसी के तलबगार होंगे हम,
जब उनके उफ़! मैखानए-हुस्न के हम, दीवाने हुए||
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“मेहरबां वो जब से महजबीं दिल पे हमारे हुए,
तमाम हंसी नज़ारे तब से फ़कत उनके, बेगाने हुए|
अब और क्या उफ़! किसी के तलबगार होंगे हम,
जब उनके उफ़! मैखानए-हुस्न के हम, दीवाने हुए||