कौन हैं बाबा प्रेमानंद गोविंद शरण, जिनके सामने बेटी वामिका के साथ विराट कोहली- अनुष्का शर्मा हो गए नतमस्तक

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इस समय भारत के दिग्गज बल्लेबाज विराट कोहली मैदान से बाहर चल रहे हैं। वें इस समय अपने परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिता रहे हैं। दुबई में नव वर्ष मनाने के बाद सीधे वो वृदांवन गए थे, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर काफी तेजी से वायरल हो रहा है। वीडियो पर कई फैंस अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कल रहे हैं। आईये जानते हैं क्या है वीडियो में और उसके वायरल होने के पीछे का कारण क्या है।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही वीडियो

दरअसल सोशल मीडिया पर जो वीडियो वायरल हो रही है, वो वीडियो वृदांवन की बताई जा रही है। एक मिनट और 4 सेकंड के वीडियो में विराट कोहली, अनुष्का शर्मा और उनकी बेटी वामिका बाबा प्रेमानंद गोविंद महाराज के सामने अन्य भक्तों के तरह जमीन पर बैठे कर प्रवचन सुनते हुए नजर आ रहे हैं। इस वायरल वीडियो में महाराज के सेवादार महाराज को विराट-अनुष्का का परिचय देते हुए भी नजर आ रहे हैं।
वीडियो में सेवादार कहता है-
‘ये भारतीय टीम के कप्तान हैं और ये फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेत्री हैं। ये आपसे मिलने आए हैं और आपके सत्संग सुनते हैं। इसके बाद वीडियो में प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि श्रीजी की माला और चुनरी सखी को पहना दीजिए। इस दौरान विराट कोहली और अनुष्का हाथ जोड़े और सिर झुकाते नजर आ रहे हैं। वामिका को भी एक माला सेवादार पहनाते नजर आ रहे हैं। इसके बाद सेवादार कहता है- ठीक है, अब आप आ जाइए और भी लोग मिलने वाले हैं।’
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जानिए कौन हैं बाबा?
आपको बता दें कि जब से यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है तब से ही यह सवाल खड़ा हो रहा है कि वीडियो में नजर आ रहे महाराज कौन हैं? तो हम आपको इस सवाल का जवाब बता देते हैं। वीडियो में जो साधु नजर आ रहे हैं वो बाबा प्रेमानंद गोविंद शरण हैं, जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर के अखरी गांव के सरसोल ब्लॉक में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका असली नाम अनिरुद्ध पांडे था।
जानकारी के मुताबिक बाबा प्रेमानंद के दादा भी संन्यासी थे। उनके पिता का नाम शंभू पांडे और माता का नाम रमा देवी था। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में भक्ति पुस्तकें और ग्रंथ पढ़ने शुरू कर दिए थे। 13 साल की उम्र में वह रात 3 बजे घर छोड़कर चले गए। इसके बाद उनका ब्रह्मचर्य जीवन शुरू हुआ और नाम आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी रखा गया।
उनका ज्यादातर जीवन गंगा नदी के किनारे बीता, वह वाराणसी के अस्सीघाट और हरिद्वार के बीच ही घूमते थे। एक बार वह किसी शिष्य की मदद से मथुरा जाने वाली ट्रेन में सवार हुए और दीक्षा के लिए मोहितमल गोस्वामी से संपर्क किया। दस साल तक गुरु की सेवा करने के बाद वह पूरी तरह वृंदावन के रंग में रंग गए। तब से वह वृदांवन में ही हैं।
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