मैं तो ‘पंचायत-2’ में बिनोद का कैरेक्टर करके भूल चुका था, पता नहीं था कि लोग इसे इतना पसंद करेंगे

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बिनोद के मशहूर किरदार निभाने वाले अशोक पाठक का कहना है कि उन्होंने असल जिंदगी में इस किरदार को जीया है. मेरे चाचा मेरे जैसे हैं। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि आरोपी व्यक्ति दोषी है। हमारे आसपास विभिन्न व्यक्तित्व वाले लोग हैं। घर की आर्थिक स्थिति शुरुआत में समान थी। इस किरदार के लिए कोई खास तैयारी नहीं की गई थी।मैंने ऑडिशन दिया और शो में भाग लेने के लिए चुना गया।बिनोद का किरदार करने के बाद अशोक पाठक के जीवन में कितने बदलाव आए? अशोक कहते हैं, ”लोग अब मुझे बिनोद के नाम से जानते हैं. हर दिन सैकड़ों संदेश आते हैं. हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में काफी बदलाव आया है.अशोक पाठक के लिए कई सालों तक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कोई काम नहीं मिला। तब पंजाबी फिल्में लोकप्रिय होने के कारण उनके घर को व्यवसाय के रूप में चलाया जाता था। अशोक उस समय को याद करते हैं जब उनका घर केवल पंजाबी फिल्मों से चलता था। मैं खाना खाने में सक्षम हूं।अशोक इस बात से सहमत हैं कि पंजाबी फिल्मों में इसी तरह की कई भूमिकाएं निभाई गई हैं, लेकिन उन्हें ऐसा करने के लिए बनाया गया और पंजाब में दर्शकों ने इसका पूरा समर्थन किया। जब मुझे हिंदी फिल्म उद्योग में कोई काम नहीं मिला, तो पंजाबी फिल्म उद्योग मदद के लिए था।अशोक ने अपनी पढ़ाई के दौरान कई अलग-अलग काम किए हैं ताकि एक ऐसा करियर खोजा जा सके जो घर की मौजूदा स्थिति को देखते हुए उपयुक्त हो। उनका कहना है कि मामला 1999 का है और नौवीं कक्षा का है। घर की हालत बेहद खराब थी। मेरा पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था इसलिए मैंने काम करना शुरू कर दिया। चाचा कपास व्यापारी हुआ करते थे। करीब एक साल तक मैंने साइकिल चलाते हुए कॉटन भी बेचा। जून की दोपहर में भी वह 25 किलोमीटर साइकिल चलाकर कपास बेचते थे।जब अशोक के पिता को जिंदल में नौकरी मिल गई, तो उनके घर की स्थिति में सुधार हुआ। फिर उसने पढ़ाई शुरू की। उन्होंने मुझे बताया कि जब वे अपने स्नातक समारोह में गए तो उन्हें थिएटर-नाटक में दिलचस्पी हो गई। मुझे लगा कि मैं अपनी भावनाओं को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकता हूं। उन्होंने कॉलेज से स्नातक करने के बाद थिएटर करना शुरू किया, लेकिन उन्हें एक अभिनय संस्थान में प्रवेश नहीं मिल सका।मुझे लगा कि इसमें कोई भ्रम नहीं है कि मैं अभिनय जानता हूं।एमए की पढ़ाई के दौरान ही अशोक की साहित्य में रुचि बढ़ने लगी। यह संभवतः उनके प्रोफेसर द्वारा प्रेरित किया गया था, जो नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक भी थे। उन्होंने कहा, “जो कभी भी पाठ्यक्रम नहीं पढ़ना चाहता, नाटकों, उपन्यासों को पढ़ने के बाद, मुझे लगता है कि वह व्यक्ति … मैं यही पढ़ना चाहता हूं।”अशोक का कहना है कि इससे उन्हें एक्टिंग में मजा आने लगा। उन्होंने मेरे साथ एक दिलचस्प कहानी साझा की। किसी ने मुझसे कहा कि थिएटर दूसरों से जुड़ने का एक शानदार तरीका है। हम दोनों गए। दोस्त चुना नहीं गया था, लेकिन मेरा था। उसके बाद, मुझे लगा कि मेरे पास अभिनय करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अशोक दिसंबर 2010 से मुंबई में रह रहा है।यह अफवाह है कि एमए के बाद, उन्होंने लखनऊ में भारतेंदु नाट्य अकादमी के लिए ऑडिशन देने का प्रयास किया। मुझे छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया। दो साल की उम्र में, प्रशिक्षण और एक इंटर्नशिप के बाद, वह अभिनय में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई आ गए।जब कोई अभिनेता पहली बार मुंबई आता है, तो उसका पहला काम भूमिकाओं के लिए ऑडिशन देना होता है। आपको फिल्म निर्माताओं को अपनी प्रोफाइल के बारे में बताना होगा। मैंने भी तुम्हारे जैसा ही किया और सौभाग्य से मेरी पहली फिल्म बिट्टू बॉस 2011 में ही मिल गई। फिर, छोटी भूमिकाएँ होने लगीं। काम चलता रहा, लेकिन यह हतोत्साहित करने वाला था क्योंकि ऐसा लग रहा था कि यह बहुत धीमी गति से चल रहा है।मेरा मानना ​​है कि अच्छी चीजों का इस्तेमाल उनकी पूरी क्षमता से किया जाना चाहिए।मैं देखता हूं कि “पंचायत” में बिनोद का दृश्य विशेष रूप से बड़ा नहीं है। मैं इस किरदार को करने के बाद भूल गया था, लेकिन मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि लोग इन्हें इतना एन्जॉय करते हैं।अशोक जब अपने 12 साल के सफर को मायानगरी में देखते है तो कई बुरी यादें दिमाग में आती हैं। संघर्ष के दौरान कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिनका जिक्र वह अब नहीं करना चाहते। वे कहते हैं कि ये यादें मुझे आग की तरह गर्म और उग्र महसूस कराती हैं। कोरोना बहुत काम था। दो-तीन साल से कोई काम नहीं मिला।कई बार, यह डर उन्हें अंदर तक हिला देता है कि उद्योग में छोटी भूमिकाएँ भी उपलब्ध नहीं होंगी, जो उन्हें नौकरियों के लिए आवेदन करने से रोक सकती हैं। अशोक थोड़ा राजी होता है और सोच-समझकर कहता है, ”हां… डर तो लगता है”। अपने अब तक के करियर में मैंने सिर्फ एक ही तरह का काम किया है, मुझे छोटे-छोटे रोल दिए गए हैं। ‘पंचायत’ में वही नियम लागू होते हैं जो सरकार में करते हैं।अचानक, फिल्म उद्योग पर सवाल उठाने के लहजे में उन्होंने कहा, “मेरे जैसा कोई करोड़पति की भूमिका क्यों नहीं निभा सकता। एक नायक हो सकता है। इसे मौका दें और देखें कि क्या यह काम करता है।अशोक का कहना है कि एक अच्छे अभिनेता की भूख अलग-अलग भूमिकाएं निभाने के मौके मिलने की होती है। मेरे पिता पूछते रहते हैं कि हमें आगे क्या करना चाहिए, लेकिन मुझे उम्मीद है कि भविष्य में चीजें धीरे-धीरे बदलेगी।वह कहते हैं: “ऐसा नहीं है कि पंचायत के बाद मेरे पास बहुत काम आना शुरू हो गया। कुछ प्रोजेक्ट पहले से ही चल रहे हैं। कुछ फिल्मों की शूटिंग शुरू होने वाली है। कुछ प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं। यात्रा और संघर्ष दोनों जारी हैं, भले ही वे कभी-कभी कठिन लगें। 


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