शहर की दौड़ती भागती जिंदगी से दूर कहीं छोटे से शहर में सपनों के आगोश में नींद के रथ पर सवार रश्मि अपनी ही दुनिया में खोई हुई हैं, बिना कल का जाने की भविष्य के गर्भ में आखिर क्या लिखा हैं? मन तक को साफ कर देने वाली हवा आखिर उसके होंठों पर मंद मुस्कान लाकर इठला रही हैं। पक्षी भी घरौंदे से निकलकर सूर्य से मिलने को आतुर हैं।
रश्मि भी सपनों की दुनिया में विलीन हैं। वो एक पार्क में मजे से घूम रही हैं, रंग-बिरंगी तितलियों के पीछे। तभी वो वहाँ पर एक बैंच की तरफ देखती हैं। वहाँ पर शायद कोई बैठा हैं। रश्मि उस तरफ धीरे-धीरे अपने कदम बढा़ती हैं। तभी पीछे से आवाज़ आती हैं रश्मि!
वो पीछे मुड़ कर देखती हैं पर वहाँ कोई नहीं होता। फिर वो बैंच की तरफ देखती हैं वो अब खाली होता हैं। वो सारी जगह देखती हैं पर उसे कोई भी दिखाई नहीं देता।
तभी पीछे से कोई उसके कंधे पर हाथ रखता हैं और वो सहम जाती हैं। फिर वो पीछे की तरफ मुड़ती हैं देखने के लिए…..
आगे की कहानी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें