जब भी कदम उनके घर की दहलीज पर पड़ती होगी
सच कहूं वो याद मुझे करती होंगी
जिस दहलीज पर हाथों में हाथ डाल
हम प्रवेश किया करते थे
आज वहां मेरी सिर्फ यादें होंगी
वो कितना याद मुझे करती होंगी…
दहलीज से दो कदम आगे जहां सोफा रखा होगा
पूछना उनसे के मैं कितना याद आता होऊंगा
बैठ उसी सोफे पर कभी बातें वो मुझसे करतीं थीं
जहां प्यार भरी बातें होती थीं
आज वहां मेरी सिर्फ यादें होंगी
वो कितना याद मुझे करती होंगी…
सोफे के थोड़ी बाईं ओर एक किचन था हमारा
जहां वो भोजन थीं बनातीं मिला कर संग वो प्यार हमारा
जहां शुरू हुई थी खिटपिट थोड़ी लड़ाई
तेरी कसम मुझे भी तेरी याद है आई
आज वहां मेरी सिर्फ यादें होंगी
वो कितना याद मुझे करती होंगी….
चलो अब ले चलता मैं हूं उस कमरे की ओर
जहां बसती है ढ़ेर सारी यादें, वो बीते पल
जहां सिर्फ प्यार ही प्यार था
ना कभी कोई तक़रार था
ना जाने क्यों एक दिन, मनहूस था आया
जिसने हम दोनों को काफी रुलाया
हुई थीं कुछ गलतफहमियां जो वजह थी लड़ाई की
बात ना पूछ, वो पल वो घड़ी हरज़ाई थी
हुई दूरियां ना जाने क्यों हमारी
वो जो कमरा है, कभी दुनिया थी हमारी
आज वहां मेरी सिर्फ यादें होंगी
वो कितना याद मुझे करती होंगी…
हो ना हो शायद गलतियां सिर्फ मेरी ही हों
जो सारी मैंने की हों
आज जब जाऊंगा
उसे सब मैं बताऊंगा
हो तुम जान हमारी
है दिल बड़ा तेरा मुझसे
माफ कर दो गलती मेरी सारी
कितना सूना हो गया होगा वो घर
जहां कभी हम दोनों ही रहते थे
आज वहां मेरी सिर्फ यादें होंगी
वो कितना याद मुझे करती होंगी….!!
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