उधार, सुधार नाम के दो भाई थे, दोनो जीवन का गुजारा जो उनके पास एक दुकान थी जिन पर वो बारी बारी से बैठा करते थे दुकान पर चाय, तेल, नमक, साबुन, रिचार्ज आदि काम करा, बेचा करते थे।
जिस दिन उधार दुकान पर बैठता था उस दिन दुकान ज्यादा चलें इसलिए वो चीजें उधार दे देता और उस दिन भीड़ भी बढ़ जाती थी लोग भी उससे बड़े खुश होते थे।
लेकिन सुधार से नज़र बड़े नाराज रहते थे और उधार की बड़ी तरीफ करते थे लेकिन ये सब सुनकर सुधार को कोई फर्क नही पड़ता था
क्योकि वो उधार से बिल्कुल उल्टा था वो उधार चीजें नही देता था।
इसी तरह क्रम चलता रहता था दुकान से कोई फायदा ही नही होता था तकलीफें ऊपर से बनी रहती थी, क्योकि सुधार जो फायदा करता उसे उधार उधार कर देता था।
लोग उससे बड़े खुश थे ये सब चक्कर जब सुधार को पता चला तब उसका उधार से बहुत झगड़ा हुआ उसने उसको दुकान पर बैठने से मना कर दिया
उधर लोग को उधार के दर्शन नही हो रहे थे सो इसलिए वो थोड़ा परेशान थे अब दुकान की बागड़ोर सुधार के हाथो में थी पूरी तरह से
लोग को समान की जरूरत और मजबूरी दोनो थी इस वो पैसे दे कर समान लेने लगे जिससे दुकान में धन आने लगा और कुछ दिनो बाद देखते देखते ,
दुकान बड़ी होती गयी ये सब उधार की समझ में नही आ रहा था वो हैरान था, उधार जब दुकान में था तब लोग उससे व्यवहार बनाते थे बड़ा हाल चाल लेते फिरते थे।
लेकिन अब ऐसा नही था उसे कोई नही पूछता इससे वो दुखी भी था।
ये सब उसका भाई उसकी हालत देख रहा था और कुछ दिन बाद उसने उसे अपनी दुकान बुलाकर अन्तर दिखाया तब जाकर कुछ कुछ समझ उधार को भी आ गयी लोगो का व्यवहार उसे समझ आने लगा था।
वो जान गया कि लोग ऐसे ही मख्खन लगाते रहते है ? और तरीफ करते रहते है।
उधार सुधार कैसे करे ? ये सुधार से सिखा ! अब उधार सुधार करके दुकान में अपने भाई की मद्द करने की कोशिश करने लगा अब तो दुकान अपनी रफ्तार पड़क चुकी थी दोनो भाई भी खुश थे।
लेकिन लोगो की आदत नही बदली वो अब भी उधार को फुसलाते रहते थे लेकिन उधार उनको साफ मना कर देता था क्योकि उधार में अब सुधार हो चुका था।।
सुधार में उधार नही हो सकता लेकिन उधार में सुधार हो सकता है।
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