आज पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि है

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कुछ राज समय के साथ और गहरे होते जाते हैं अगर उनका समय रहते पर्दाफाश न किया जाये तो ऐसे राज सिर्फ राज ही रह जाते हैं । ऐसे ही कुछ मौतें ऐसी होती है जो ताउम्र रहस्य बनी रहती है। ऐसा ही एक राज है गुदड़ी के लाल, लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद में हुई मौत का जो आज भी एक रहस्य है । आज 46 वर्ष बाद आज भी रहस्य ही बना हुआ है।

बात सत्तर के दशक की है जब पाकिस्तान के साथ 1965 का युद्ध ख़त्म होने के बाद 10 जनवरी 1966 को शास्त्रीजी ने पाकिस्तानी सैन्य शासक जनरल अयूब ख़ान के साथ तत्कालीन सोवियत रूस के ताशकंद शहर में ऐतिहासिक शांति समझौता किया था। सबसे ज्यादा हैरानी वाली बात यह रही कि उसी रात शास्त्रीजी का कथित तौर पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। बताया जाता है कि समझौते के बाद लोगों ने शास्त्रीजी को अपने कमरे में बेचैनी से टहलते हुए देखा था। शास्त्रीजी के साथ ताशकंद गए इंडियन डेलिगेशन के लोगों को भी लगा कि वह परेशान हैं। डेलिगेशन में शामिल शास्त्रीजी के इनफॉरमेशन ऑफ़िसर कुलदीप नैय्यर ने लिखा है, “रात में मैं सो रहा था कि किसी ने अचानक दरवाजा खटखटाया। वह कोई रूसी महिला थी। उसने बताया कि आपके पीएम की हालत सीरियस है। मैं जल्दी से उनके कमरे में पहुंचा। वहां एक व्यक्ति ने इशारा किया कि ही इज़ नो मोर। मैंने देखा कि बड़े कमरे में बेड पर एक छोटा-सा आदमी पड़ा था।“ कहा जाता है कि जिस रात शास्त्रीजी की मौत हुई, उस रात खाना उनके निजी सर्वेंट रामनाथ ने नहीं, बल्कि सोवियत में भारतीय राजदूत टीएन कौल के कुक जान मोहम्मद ने बनाया था। शास्त्री जी की मौत से जुडी कई और भी कहानियां लगातार सामने आती रही लेकिन उनकी मौत का असल सच आज भी एक राज है।

शास्त्री अक्‍सर कहते थे, ‘हम चाहे रहें या न रहें, हमारा देश और तिंरगा झंडा सदा ऊंचा रहना चाहिए’। वह उन नेताओं में थे जो अपने दायित्व अच्छी तरह समझते थे । लालबहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री का कहना था कि जब लालबहादुर शास्त्री की लाश को उन्होंने देखा था तो लालबहादुर शास्त्री की छाती, पेट और पीठ पर नीले निशान थे जिन्हें देखकर साफ लग रहा था कि उन्हें जहर दिया गया है । पिछले दिनों एक सनसनीपूर्ण घटना घटी, जिससे पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य और गहरा गया है। उनके परिवार के सदस्यों के द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई इस जानकारी को यह कहकर ठुकरा दिया गया कि यदि 11 जनवरी 1966 की घटना को सार्वजनिक किया गया तो इसके कारण विदेश संबंधों को नुकसान पहुंचेगा और संभव है कि संवेदनशील जानकारी देने पर देश में गड़बड़ी पैदा हो जाए। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि एक ऐसा व्यक्ति जिसने अपनी पूरी जिंदगी देश की सेवा में लगा दी आज भी ऐसे महान व्यक्ति की मौत का राज ‘राज’ ही है । कहीं ऐसा तो नही कि अगर मौत का राज खुले तो कुछ महान व्यक्तित्वों के किरदार ही बदल जाएँ ! कुछ भी हो लेकिन जिस तरीके से आज भी भारत माता के दोनों सपूतों (सुभाषचंद्र बोस और लाल बहादुर शास्त्री) की मौत एक राज है उससे एक बात तो स्पष्ट है कि कहीं कुछ गड़बड़ तो है……!!




लेखक: अनुज हनुमत “सत्यार्थी”

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