एक तरफ यूपी में विधानसभा चुनाव की तारीखें भी घोषित हो चुकी हैं । जनता के बीच चुनावों को लेकर जबरदस्त उत्साह है । वहीं दूसरी तरफ सियासी गलियारों में सूबे की सत्ता पर अपना कब्जा जमाने के लिए उठा पटक भी अपने उच्च स्तर तक पहुंच गई है। लगातार अपनी ही पार्टी में चल रही नूराकुश्ती के कारण अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के बीच सुलह की संभावना भी हर एक नये दिन के बाद समाप्त होती दिख रही है।
अगर समाजवादी पार्टी और परिवार में मची जंग की बात करें तो यह अब आखरी मुकाम पर पहुंच चुकी है। सूत्रों की मानें तो पार्टी के साइकिल सिंबल पर सोमवार को निर्वाचन आयोग अखिलेश यादव गुट और मुलायम सिंह खेमे के दावों को लेकर अपना फैसला सुना सकता है लेकिन अभी भी सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि साईकिल सिम्बल मिलेगा किसे और अगर सिम्बल फ्रीज हुआ तो फिर आगे दोनों गुट क्या रणनीति बनाएंगे । फिलहाल सबकी नजरें आज चुनाव आयोग पर रहेंगी।
जहां तक जानकारों की मानें तो निर्वाचन आयोग पार्टी के साइकिल सिंबल को फ्रीज कर दोनों खेमों को एक नया चुनाव चिन्ह प्रदान कर सकता है और ऐसे में नए चुनाव चिन्ह के साथ चुनाव लड़ना अखिलेश ही नही बल्कि मुलायम सिंह यादव के लिए भी चुनौती भरा हो सकता है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में मतदाता पार्टियों के चुनाव चिन्ह को देखकर वोट करते हैं और इस समय जब लगातार पार्टी सत्ता पर थी तो साईकिल का जबरदस्त प्रचार भी हुआ है। अब जब चुनाव महज एक महीने ही बचा है तो अखिलेश और उनके चुनाव रणनीतिकारों के लिए इतने कम समय में लोगों तक नए सिंबल का प्रचार करना आसान नहीं होगा। यह सबसे बड़ी चुनौती होगी।
सूत्रों के हवाले से खबर है कि अखिलेश यादव के लिए इस विधानसभा चुनाव में पॉलिटिकल स्ट्रैटजिस्ट और हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर स्टीव जार्डिंग ने इस स्थिति से निपटने के लिए भी मास्टर प्लान बनाया है और इस वक्त प्रोफेसर स्टीव जार्डिंग 1 लाख से ज्यादा लोगों के साथ काम कर रहे हैं। बताया तो यहाँ तक जा रहा है कि जार्डिंग की यह टीम गांवों में ब्रांड अखिलेश के लिए विलेज एम्बेसडर के रूप में काम कर रही है। अब इसमें कितनी सच्चाई है ये तो आने वाले परिणाम ही बताएँगे।
सबसे खास बात यह है कि इसके लिए जर्डिंग के पूर्व स्टूडेंट एडवेट विक्रम सिंह 100 ट्रेंड लोगों की टीम को लीड कर रहे हैं और यह टीम सिंबल चेंज होने की सूरत में एक नए रणनीति के तहत लोगों को अखिलेश के नए सिंबल के बारे में लोगों को बताएगी। आपको बता दें कि इस राज्य स्तरीय कम्युनिकेशन नेटवर्क की वजह से ही अखिलेश यादव को विश्वास है कि आखरी क्षणों में चुनाव चिन्ह बदलने की दशा में भी वे जीत सकते हैं। लेकिन उस दशा में ये सब इतना आसान नही होगा जितना अखिलेश और उनके रणनीतिकार सोंच रहे हैं।
मीडिया को मिली खबर के अनुसार अखिलेश मोटरसाइकिल चुनाव चिन्ह चाहते हैं इससे यह भी मैसेज जाएगा की विकास के साथ-साथ साइकिल अब मोटरसाइकिल हो गई है। अब इन बातों में कितनी सच्चाई है यह तो आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जायेगा लेकिन इतना तो साफ़ है कि सूबे के इस हाई वोल्टेज पारिवारिक ड्रामें से लोगों में चुनाव को लेकर और उत्साह बढ़ गया है।
अगर हम इस पूरे सियासी ड्रामे पर नजर डालें तो एक बात स्पष्ट रूप से नजर आएगी कि पिता न तो पुत्र के ऊपर प्रहार कर रहा है और पुत्र न तो पिता के ऊपर । दोनों पक्ष पार्टी में मचे मौजूदा घमासान के लिए एक -एक व्यक्ति को दोषी मान रहे हैं। अखिलेश गुट का कहना है कि अमर सिंह ही लड़ाई का पूरा कारण और इन्हें पार्टी से हटा देना चाहिए ।वहीं मुलायम गुट का कहना है कि रामगोपाल यादव ही लड़ाई की असल जड़ है। अब इसके पीछे की सच्चाई क्या है ये तो पार्टी के हुक्मरानों को ही पता होगा ।लेकिन अगर इस पूरे घमासान के बाद दोनों ही गुट सत्ता से दूर रहे तो फिर निश्चित ही पार्टी का भविष्य समाप्त हो जायेगा । फ़िलहाल सूबे की जनता इस पूरे सियासी ड्रामे पर नजर बनाए हुए है।
जानकारों की मानें तो इस पूरे घटनाक्रम के पीछे की सच्चाई का पता लगाना तो बहुत मुश्किल है लेकिन आंकलन तो किया ही जा सकता है। पिछले पांच साल के कार्यकाल के बाद आज अखिलेश को एक विकास पुरुष के तौर पर पेश किया जा रहा है जिस कारण कुछ लोगो को पार्टी के परंपरागत वोटों पर फर्क पड़ता नजर आ रहा है। शायद इसी डर से ये सियासी ड्रामा रचा गया हो! अखिलेश के विकासवादी चेहरे को आगे करके उन वोटों को हासिल करना जो अभी भी समाजवादी पार्टी से कोसो दूर हैं ।वहीं दूसरी ओर उन वोटों को भी हासिल करना जो पार्टी के जन्म से उनके साथ हैं। कुलमिलाकर गाँव की एक कहावत की मानें तो ‘चिट्ट भी हमारा और पट्ट भी हमारा’ जैसी लोकोक्ति को सच करना पार्टी का लक्ष्य हो सकता है! फ़िलहाल ये कहावत कितनी सच साबित होगी ये तो आने वाले चुनावी परिणाम ही बताएंगे!