जन्मदिवस – “मिर्जा गालिब”

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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है “

ये मशहूर पंक्तियां हैं उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ ‘ग़ालिब’ की जिन्हें उर्दू का सर्वकालिक महान शायर माना जाता है और फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का भी श्रेय दिया जाता है। ऐसे महान शायर का आज पूरा देश जन्मदिवस मना रहा है । ग़ालिब साहब को भारत और पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है। उन्हे दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला का खिताब मिला। उनकी शायरियां आज भी उतनी ही ज्यादा प्रासंगिक हैं जितनी पहले थी । आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में अपनी ज़िन्दगी गुजारने वाले ग़ालिब को मुख्यतः उनकी उर्जू ग़ज़लों को लिए याद किया जाता है। उन्होने अपने बारे में स्वयं लिखा था कि दुनिया में बहुत से कवि-शायर ज़रूर हैं, लेकिन उनका लहजा सबसे निराला है –

“हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और”

अगर हम ग़ालिब साहब की व्यक्तिगत जिंदगी की बात करें तो उनका जन्म आगरा मे एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था। उन्होने अपने पिता और चाचा को बचपन मे ही खो दिया था, ग़ालिब का जीवनयापन मूलत: अपने चाचा के मरणोपरांत मिलने वाले पेंशन से होता था । ग़ालिब की पृष्ठभूमि एक तुर्क परिवार से थी और इनके दादा मध्य एशिया के समरक़न्द से सन् १७५० के आसपास भारत आए थे।
शायरियो का शौक रखने वाला हर इन्सान मिर्जा ग़ालिब के नाम से वाकिफ होगा | इसीलिए अमूमन कहा जाता है कि ग़ालिब और शायरी एक दूसरे के पर्याय हैं जिन्हें एक दूसरे से जुदा नही किया जा सकता ।

भारतीय सिनेमा ने Mirza Ghalib मिर्जा ग़ालिब के सम्मान में 1954 में मिर्जा ग़ालिब फिल्म बनाई जिसमे भारत भूषण ने ग़ालिब का किरदार निभाया | इस फिल्म का संगीत गुलाम मोहम्मद ने दिया और कविताये उनके खुद की किताबो से ली गयी | इसी तरह पाकिस्तान में भी उनके जीवन पर फिल्म बनी जिसमे सुधीर ने ग़ालिब का किरदार निभाया था | इसके बाद 1988 भारत के मशहूर गीतकार गुलजार ने दूरदर्शन पर Mirza Ghalib मिर्जा ग़ालिब टीवी सीरियल बनाया जिसमे नसीरुद्दीन शाह ने ग़ालिब का किरदार निभाया था और इस सीरियल की गजले जगजीत सिंह द्वारा गायी गयी | यह सीरियल काफी सफल रहा और Mirza Ghalib मिर्जा ग़ालिब एक प्रसिद्ध हस्ती के रूप में उभर कर आये |

ग़ालिब साहब की कुछ ऐसी शायरियां जिन्हें आज भी सदाबहार हैं –

पीने दे शराब मस्जिद में बैठकर ए ग़ालिब ,
या वो जगह बता जहा खुदा नहीं

कल भी कल की बात हुई आज भी कल में बीत गया ,
कल फिर कल में आज हुआ फिर यु ही जमाना बीत गया

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल ,
जब आँख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है

उन्हें देखकर चेहरे पर आती है रौनक ,
और वो समझते है बीमार का हाल अच्छा है

मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे ,
तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे

मोहब्बत में नहीं है ,फर्क जीने और मरने का ,
उसी को देखकर जीते है जिस काफिर पर दम निकले




लेखक: अनुज हनुमत “सत्यार्थी”

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