शाम का समय था मैं चाय की दुकान पर बैठा हुआ था इधर-उधर की बातें चल रही थी कि इतने में मैंने शर्माजी को सामने से गुजरते हुए देखा तो मैंने उन्हें आवाज लगाई और चाय वाले को इशारा कर दो कप चाय देने को कहा.
“एक तो नोट बंदी और ऊपर से नोटों की मंदी ने तो हमारा नुकसान करा दिया.”पास बैठते ही शर्माजी जी बोल पड़े ।
“क्या हुआ शर्माजी, आज आप थोड़े थके हुए से दिखाई दे रहे हैं, क्या बात है जरा हमें बताये भी, “मैंने उत्सुकता वस उनसे पूछ बैठा.
“अब क्या बताएं वर्माजी, ये नोट बंदी जबसे हुआ है ना, हमारा जीना दूभर हो गया है कसम से और तो और मेरे बीबी-बच्चों की फरमाइशें सो अलग. “शर्माजी जी अपनी
व्यथा सुनाने लगे.
“कल की ही बातें बताता हूं, आपको तो पता ही है मैं रात की ड्यूटी करता हूँ और फिर दिन में आराम, पर कुछ दिनों से मेरा आराम हराम हुआ परा है. कल जैसे ही मैं अपनी ड्यूटी करके लौटा तो बीबी मेरी बोल पड़ी के राशन खत्म होने को है, बच्चे बोलने लगे कि पापा हमारी स्कूल की फीस देनी है. अब आप ही बताएं कि क्या करे हम? ”
मैंने उन्हें बीच में ही रोक कर उनसे कहा, “लिजिये, चाय पी लिजिये. ”
शर्माजी चाय लेकर फिर बोल पड़े, “एगो व्यथा है हमारे मन में क्या आप सुनिएगा? ”
मैंने कहा, “हाँ-हाँ क्यों नहीं, आप मेरे मित्र हैं साहब, मैं आपकी बातें जरुर सुनूंगा. फरमाइये तो सही. ”
शर्माजी सुनाने लगे –
है बुरा हाल हमारा इस नोटों की बंदी में,
समझ नहीं आता मैं क्या करूं पैसों की मंदी में.
बीबी कहे राशन दो लाकर, बच्चे बोले कपड़े
अब उनका क्या होगा, जिनके घर कालाधन सड़ रहे पड़े-पड़े.
कालाधन रखने वालों सुनो जरा तुम गौर से,
विकास की बयार चली है देश में जोर-शोर से.
कहाँ छुपोगे, कहाँ छुपाओगे तुम अपना वो कालाधन,
हर खबर है सरकार को हो जाओगे तुम निर्धन.
आम आदमी हो रहे हैं थोड़े से परेशान,
अब उन्हें कौन समझाये के नेता दिखा रहे हैं अपनी झूठी शान.
हो रहा है आम आदमी तेजी से जानकार,
के कहाँ रखें हैं नेता ने छिपा कर पैसों वाली कार.
आज जो पैसों की मंदी है वो सब ठीक हो जायेगा,
आने दो चुनाव भ्रष्टाचारी नेता सब गायब हो जायेगा.
हमें क्या गम है पैसों की, हम तो कुछ लोगों से ले लेंगे उधार,
तुम्हारा क्या होगा कालाधन रखने वालों, तेरे सारे पैसे हो जायेंगे बेकार ।