सोचा था मैंने कि साथ होगा तेरा, मिलेगा सिरहाने मुझे बाहों का तेरा, छांंव भी मिलेगी मुझे तेरे बालों की, आईना मिलेगा आँखों की तेरी मुझे, तेरा मासूम-सा चेहरा थाम कर हाथों से अपनी करुँगा बातें तुमसे, तुम बस कहते रहतीं और मैं खामोश तुम्हें देखा करता…ये ख्वाब मेरे ख्वाब बनकर ही रह गये।
सच कहूँ तुम्हें मुझे हर वक्त तेरी याद आती है, मैं हर लम्हे में बस तुम्हें ही जीता हूँ, तेरे जाने से हर वक्त मुस्कुराने वाला मेरा दिल अब ना जाने क्यों अनजान बन घूमता फिर रहा है जमाने की भीड़ में ।
गर सुन सको तो सुनो पैगाम मेरा -“तेरे आकर चले जाने की ”
तुम यूं आये मेरी दुनिया में मानो मुसाफ़िर था कोई भटका हुआ, जिसे मिली हो पनाह रात गुजारने की.
तुम आये तो दिया मैंने बिछौना तुम्हें अपने प्यार का, तकिया भी दी तुम्हें मैंने अपने दिल की.
तुम यूं सोये पहलू में तुम मेरे लगा बहुत चलकर हो आये, तुमने सोते हुए फैलाया अपने इच्छा का चादर.
मैं एकटक सा देखता रहा बस तुम्हें, तुम्हें यूं देखते हुए लग गईं आँखें मेरी सिरहाने में तेरे ।
सुबह जब आँख खुली मेरी तो देखा तुम जा चुके थे मिली हुई मंजिल समझकर और छोड़ गये यादों को मंजिल का तोहफा समझकर.
तुम आये यूं लगा कि मुझ फकीर की झोपड़ी में एक हमसफ़र साथ होगा, गूजार लूंगा हर पलों को साथ में तेरे ।
“गर्दिश-ए-आशिकी को मौसिकी में जुदाई ही पसंद आई,
चाहता तो चुराकर ले जा सकता था दिल वो मेरा ।”