कहते हैं ना हर किसी का कहीं ना कहीं एक प्यार या यूं कहें कि एक साथी होता है, आज मैं बस उसी प्यार को अपने दिल से समेट कर आप सभी को एक झलक दिखाने की कोशिश कर रहा हूँ।
“हर वो मुक्कमल ख्वाब पूरे किए तुमने,
जिससे अनजान था वर्षों से मैं
आज जो समझा हूँ मैं प्यार को तेरे,
तो समझ आया मुझे,
खुद के लिए तुमने कुछ भी ना रखा था बचाकर ।
यूं उमड़ आई खुशी दामन में मेरे,
ऐसा लगा सारा जहाँ भूल आये हो तुम मेरे लिए ।
हूँ खुशनसीब मैं जो मिले हो तुम मुझे,
भटकता रहता मैं वरना मुक्कमल आशिकी के लिए
तुम रहो, मैं रहूं और रहे ये पल,
खुदा से और क्या माँगू मैं खुद के लिए
किया है जो वादा तुमने साथ निभाने का,
अमल करना बस इसी वादे पर तुम बस मेरे लिए
सोचा मैं हूँ लिख भेजूं ये पैगाम एक नगमे के तौर पर,
आसमां से जो उतर आये हो तुम सिर्फ मेरे लिए
बुझने ना देना दिया हमारे प्यार का कभी,
जलाए हैं जो हमने, एक सौगात जहाँ के लिए
बन कर उमरेगा प्यार हमारा एक फूल की तरह,
खिलाएं हैं जो हमने, एक पैगाम की तरह जमाने के लिए
रुख़सत ना होना कभी तुम एक मांझी की तरह,
लगाना है पार नैया को हमें हमारे प्यार के लिए
बस यही पैगाम है मेरा इस जालिम जमाने को,
करना कभी तुम प्यार ऐसा अपने सनम के लिए।
“ना जाने कितने आये होंगे शायर,
साथ अपने दर्दों को समेट कर;
लिखा ना होगा कभी पैगाम ऐसा अपने महबूब को,
जैसा मैं आज लिख कर आया हूँ ।”