नोट बंदी का असर दिन ब दिन किसानों के लिए एक अभिशाप बनता जा रहा है। सुदूर गावों का हाल वाकई बुरा हैं। किसानों को नोटबंदी की वजह से खाद और बीजों को मिलने में दिक्कत का सामना पद रहा है। बैंक के सामने की लाइनें ख़तम होने का नाम नही ले रही हैं। कई इलाके ऐसे हैं जहाँ आज भी 200 -300 गावों पे एक या दो बैंक ही पड़ते हैं और ऐसे में इस समस्या से निपटारे के लिए ये 50 दिन बहुत ही कम मालूम होते हैं।
मज़दूरों की दैनिक कमाई आधी भी नही रह गयी है क्योंकि ये वह वर्ग है जो प्लास्टिक मनी के इस्तेमाल से कम से कम पचासों साल पीछे है और यह कोई छुपी बात नही है की देश में अभी भी साछारता का स्तर बहुत ही नीचे है। जो किसान और मज़दूर आज भी बैंक में पैसे जमा और निकासी के लिए किसी दूसरे के भरोसे रहते हैं उनसे प्लास्टिक मनी के उपयोग की उम्मीद करना उनकी मज़बूरियों का मज़ाक बनाने ज्यादा और कुछ भी नही है।
तंग हालत और रोज़मर्रा की ज़रूरतें न पूरी कर पाने से किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं।
शहरों के बजाये अगर गावों के हालातों पे सरकार की नज़र ज्यादा रहे तो हो सकता की इस नोटबंदी की एक बेहतर दिशा मिल सके क्योंकि भारत आज भी देश के 70 प्रतिशत गाँव में ही बसता है।
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